बिहार में बनेगा 445 किलोमीटर लंबा अश्वगंधा कॉरिडोर.. जानिए कहां से कहां तक बनेगा





कोरोना संकट के दौरान एक बात जो सबकी समझ में आई वो ये है कि हर व्यक्ति के इम्यूनिटी को विकसित करना होगा. जिसमें आयुवर्दे का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसमें तुलसी से लेकर अश्वगंधा तक का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में बिहार में अश्वगंधा कॉरिडोर विकसित करने की मंजूरी मिली है.

क्यों बनेगा अश्वगंधा कॉरिडोर
अश्वगंधा (Withania Somnifera) में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा है। ये इम्यूनिटी बूस्टर (Immunity Booster) की तरह काम करता है। कोरोना काल में इसकी विश्वस्तर पर मांग हो रही है। अश्वगंधा की खेती आसान है। इसे अपनाकर किसान तीव्र गति से समृद्ध बनेंगे। अश्वगंधा की जड़ सबसे उपयोगी है। हर उम्र के लोग इसका प्रयोग कर सकते हैं। दवा बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों से 62 और जड़ों से 48 प्रमुख मेटाबोलाइट्स की पहचान की जा चुकी है। अश्वगंधा की पत्तियों में पाए जाने वाले विथेफैरिन-ए और विथेनोन में कैंसर प्रतिरोधी गुण होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के चयनित औषधीय पौधों के मोनोग्राफ में भी अश्वगंधा को उसकी अत्यधिक औषधीय क्षमता के कारण शामिल किया गया है।

कहां से कहां तक बनेगा अश्वगंधा कॉरिडोर
भागलपुर से बक्सर तक गंगा के किनारे औषधीय कॉरीडोर (Herbal Corridor) बनेगा। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (Bihar Agriculture University) का क्षेत्र बक्सर से भागलपुर तक है। इस इलाके में गंगा के किनारे अश्वगंधा के पौधे लगाए जाएंगे। विश्वविद्यालय ने इसकी तैयारी शुरु कर दी है।

गंगा का किनारा क्यों चुना गया
गंगा नदी देश की सांस्कृतिक विरासत है। गंगा के जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं। गंगा के किनारों को सरकार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहती है। बक्सर से भागलपुर तक की दूरी 445 किलोमीटर है। गंगा किनारे के कुछ गांवों का चयन कर उसके कुछ रकवे में प्रयोग के तौर पर किसानों के खेतों में औषधीय पौधों की खेती की जाएगी।

इसे भी पढ़िए-

नालंदा में लगाए गए कई औषधीय पौधे
नालंदा जिला के इस्लामपुर स्थित पान अनुसंधान केंद्र में , इस्लामपुर, नालंदा के प्रभारी डॉ. एसएन दास कहते हैं कि यहां के हर्बल गार्डन में औषधीय पौधे अश्वगंधा, सतावरी, तुलसी, मधुनाशनी, सफेद मूसली तथा गिलोय सहित एक सौ पौधों का कलेक्शन है। जरूरत पर बड़े पैमाने पर पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इन पौधों पर अनुसंधान भी जारी है।

Post a Comment

0 Comments