गरुड़पुराण में बताया गया है कि स्नान करते समय आपके पितर यानी आपके पूर्वज आपके आस-पास होते हैं और वस्त्रों से गिरने वाले जल को ग्रहण करते हैं, जिनसे उनकी तृप्ति होती है. निर्वस्त्र स्नान करने से पितर अतृप्त होकर नाराज होते हैं जिनसे व्यक्ति का तेज, बल, धन और सुख नष्ट होता है. इसलिए कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए।
पद्म पुराण में उस कथा का जिक्र है जिसमें श्री कृष्ण की गोपियां निवस्त्र होकर नदी में स्नान कर रही थी। और तब श्री कृष्ण उनके वस्त्र चुरा लेते हैं। श्री कृष्ण से गोपियां बहुत विनती करती है कि उनके वस्त्र वह लौटा दे। लेकिन श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे वस्त्र वृक्ष पर है पानी से निकलो और वस्त्र लेलो। निर्वस्त्र होने के कारण वह जल से बाहर आने में असमर्थ होती है। और बताती है कि वह निर्वस्त्र है ऐसे में वह एसे बाहर कैसे आ सकती है।
श्रीकृष्ण पूछते हैं जब निवस्त्र होकर जल में गई थी तब शर्म नहीं आई थी। जवाब में गोपियो बताती है उस समय यहां कोई नहीं था। श्री कृष्ण कहते हैं यह तुम सोचती हो कि मैं नहीं था लेकिन मैं तो हर पल हर जगह मौजूद होता हूं। यहां आसमान में उड़ते पक्षियों और जमीन पर चलने वाले जीवो ने तुम्हें निर्वस्त्र देखा। तुम निर्वस्त्र होकर जल में गई तो जल में मौजूद जीवो तुम्हें निर्वस्त्र देखा जल में नग्न होकर प्रवेश करने से जल रूप में मौजूद वरुण देव ने तुम्हें नग्न देखा। और यहां उनका अपमान हुआ। और तुम उसके लिए पाप के भागी हो।
श्रीकृष्ण कहते हैं निवस्त्र होकर स्नान करने से वरुण देवता का अपमान होता है। यह सोचना कि बंद कमरे में आप निर्वस्त्र होकर स्नान कर रहे हो और आपको कोई नहीं देख रहा तो आप गलत सोच रहे हैं वहां मौजूद छोटे जीव और भगवान आपको देख रहे हैं आपकी नग्नता आप को पाप का भागी बना रही है।
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