पक्ष और विपक्ष ने जब भी पुकारा, मुलायम मौजूद रहे |

मुलायम सिंह यादव राजनीति के ऐसे धुरंधर नेता थे जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति को कई अहम मोड़ दिए। कभी 'एकला चलो रे' की नीति पर आगे बढ़ने तो कभी अपनों से ही धोखा खाने के बाद भी मुलायम सिंह यादव की उपस्थिति हमेशा ऐसी रही जिसमें उनके लिए कहा गया कि आप उन्हें पसंद करें या नापसंद लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वह ऐसी राजनीति के पक्षधर थे जिसमें कोई पूर्वाग्रह नहीं होता था और वह तमाम विकल्पों को लेकर खुला रखते थे। 



यह नीति कभी उनके काम आई तो कभी उनका नुकसान कर गई। लेकिन पहले का है जब मलायम सोनिया से मिले। मंडल-कमंडल आंदोलन के बाद मुलायम सिंह ने कभी बीजेपी से हाथ नहीं मिलाया। दूसरी 1997 में वह प्रधानमंत्री बनने के बेहद करीब ओर, लखनऊ से दिल्ली तक का उनका विपक्षी पहुंच गए थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और के रूप में सफर कई उतार-चढ़ाव भरा रहा। 


पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के विरोध ने उन्हें इससे वंचित कर दिया। हालांकि, उन्होंने महसूस हुई वह हमेशा उपलब्ध रहे। 2015 में इसे दिल पर नहीं लिया।


मुलायम सिंह यादव राजनीति



2009 में लोकसभा में 22 सीटें जीतने के करने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उसके के ऐसे धुरंधर नेता थे जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति

बाद भी यूपीए सरकार में उनकी पूछ नहीं रही। 


बाद जनता दल से टूटे सभी क्षेत्रीय दलों का को कई अहम मोड़ दिए। कभी 'एकला चलो रे'

2009 से 2014 के बीच यूपीए सरकार से भी एकसाथ विलय कर नई पार्टी बनाने की भी गंभीर की नीति पर आगे बढ़ने तो कभी अपनों से ही

कई मौकों पर उनका टकराव भी हुआ। लेकिन पहल की जिसके अध्यक्ष वह बनते।


 लेकिन धोखा खाने के बाद भी मुलायम सिंह यादव की

वह जब भी जरूरत हुई यूपीए सरकार के साथ यह योजना भी नेताओं के अंतर्विरोध के कारण उपस्थिति हमेशा ऐसी रही जिसमें उनके लिए

में आए। कहा गया कि वह राजनीति में अहम आगे नहीं बढ़ सकी। उधर, 2017 आते-आते कहा गया कि आप उन्हें पसंद करें या नापसंद

को अलग रखते थे। 



चाहे 2019 आम चुनाव से मुलायम सिंह का स्वास्थ्य कमजोर होने लगा लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वह

पहले संसद के अंदर पीएम मोदी को जीत का और अखिलेश यादव का नियंत्रण पार्टी पर बढ़ने ऐसी राजनीति के पक्षधर थे जिसमें कोई पूर्वाग्रह

आशीर्वाद देना हो या उनके सीएम कार्यकाल में लगा। वह राजनीति से खुद को दूर करने लगे। नहीं होता था और वह तमाम विकल्पों को लेकर

कारसेवकों पर गोली चलाए जाने की घटना का लेकिन संसद में उनकी सक्रियता हमेशा दिखती खुला रखते थे। यह नीति कभी उनके काम यह फोटो 2004 के लोकसभा चनाव से

बचाव करना, वह ऐसे मुखर राजनेता के रूप में थी। नियमित रूप से संसद के कॉरिडोर में सभी आई तो कभी उनका नुकसान कर गई। लेकिन पहले कामलाराम सोनिया से मिले सामने रहे जो अपनी राजनीतिक सोच को व्यक्त लोगों से मिलते थे। लोकसभा में जब भी चीन मंडल-कमंडल आंदोलन के बाद मुलायम सिंह

- करने में बिल्कुल नहीं हिचकते थे भले ही उसमें से जुड़ा मसला आता वह बहुत दिल से इस ने कभी बीजेपी से हाथ नहीं मिलाया। दूसरी 1997 में वह प्रधानमंत्री बनने के बेहद करीब सियासी जोखिम भरा रहा हो। यही बातें उन्हें मुद्दे पर बोलते थे और इस बारे में वह बाहर ओर, लखनऊ से दिल्ली तक का उनका विपक्षी पहुंच गए थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और दूसरे नेताओं से अलग भी करती रही। 


आकर मीडिया से चीन पर अपनी राय के बारे के रूप में सफर कई उतार-चढ़ाव भरा रहा। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के विरोध विपक्ष के दायरे में जब भी उनकी जरूरत में बताते थे।


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