बिहार की वीर बेटी की कहानी: पिता को चलने में दिक्कत है, 13 साल की बेटी साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से दरभंगा लाई; कहा- वहां भूखे मरने की नौबत थी



पिता को साइकिल पर बैठाकर दरभंगा पहुंची ज्योति कुमारी।


दिल्ली से दरभंगा आने में ज्योति को आठ दिन लगे


एक हादसे में ज्योति के पिता का घुटना टूट गया था


दरभंगा. लॉकडाउन की मार उन गरीबों पर सबसे अधिक पड़ी है जो आमदिनों में भी दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे। भूखे मरने की नौबत आई तो कोई साइकिल से तो कोई पैदल अपने घर की ओर चल पड़ा। इस मुश्किल वक्त में साहस की ऐसी कहानियां भी सामने आई हैं, जिससे पता चलता है कि अपनी हिम्मत के दम पर इंसान बड़ी चुनौतियों का भी सामना कर सकता है। 

ऐसी ही एक कहानी है बिहार के दरभंगा जिले के 13 साल की ज्योति कुमारी की। ज्योति के पिता मोहन पासवान दिल्ली में रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे। एक हादसे में उनका घुटना टूट गया। जख्म तो भर गए, लेकिन अब वह ठीक से चल भी नहीं पाते हैं। परिवार इस संकट से उबर पाता इससे पहले ही लॉकडाउन लग गया। जमा किए गए पैसे और राशन खत्म हो गए तो भूखे मरने की नौबत आ गई। सामने एक ही रास्ता था घर लौटना। 

पिता को साथ लेकर अपने गांव सिरहुल्ली की ओर बढ़ती ज्योति। 

ज्योति ने हिम्मत दिखाई। उसने पिता से कहा कि यहां भूखे मरने से अच्छा है चलिए गांव चलते हैं। पिता पहले इसके लिए तैयार न हुए। कहा- बेटी मेरा वजन कोई 20-30 किलोग्राम नहीं है। दरभंगा दिल्ली से 1100 किलोमीटर दूर है। तुम कैसे इतनी दूर मुझे बैठाकर साइकिल चला पाओगी। ज्योति ने कहा कि पापा चलिए, मैं आपको लेकर घर जा सकती हूं। 

सिरहुल्ली गांव के पुस्तकालय के बरामदे में अपने पिता के साथ बैठी ज्योति कुमारी।

सात दिन में तय किया सफर
दिल्ली से दरभंगा आने में ज्योति को सात दिन लगे। ज्योति कहती है कि रास्ते में लोगों ने हमें खाना खिलाया, पानी पिलाया। मेरे पिता हादसे का शिकार हो गए थे। घर में न राशन था और न पैसा। ट्रक वाले बिहार ले जाने के बदले 3 हजार रुपए मांग रहे थे। पैसे नहीं थे तो ट्रक वाले को क्या देते? मकान मालिक रूम छोड़ने के लिए दबाव बना रहे थे। मेरे पास घर आने के लिए साइकिल के सिवा और कुछ नहीं था। ज्योति शनिवार को कमतौल थाना क्षेत्र के टेकटार पंचायत के सिरहुल्ली गांव स्थित अपने घर पहुंची। अभी वह पिता के साथ क्वारैंटाइन में है।

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